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ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
समझते हैं मिरे दिल की वो क्या ना-फ़हम ओ नादाँ हैं
हुज़ूर-ए-शम'अ बे-मतलब नहीं परवाना आता है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
'असद' साग़र-कश-ए-तस्लीम हो गर्दिश से गर्दूं की
कि नंग-ए-फ़हम-ए-मस्ताँ है गिला बद-रोज़गारी का