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ग़ज़ल
हाँ मुझ पे फ़ैज़-ए-'मीर'-ओ-'फ़िराक़'-ओ-'नदीम' है
लेकिन तू हम-सुख़न मुझे इतनी हवा न दे
असलम अंसारी
ग़ज़ल
'मीर' ओ 'ग़ालिब' क्या कि बन पाए नहीं 'फ़ैज़' ओ 'फ़िराक़'
ज़ोम ये था 'रूमी' ओ 'अत्तार' बन जाएँगे हम
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
'क़ाएम' ये फ़ैज़-ए-सोहबत-ए-'सौदा' है वर्ना मैं
तरही ग़ज़ल से 'मीर' की आता था बर कहीं
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' हुए 'हसरत' हुए या 'फ़ैज़'-ओ-'फ़िराक़'
सब ग़ज़ल वालों पे सौ जान से वारी हुई शाम
सय्यद मसरूर जौहर
ग़ज़ल
तबाही तक तो आ पहुँचे ब-फ़ैज़-ए-मग़्फ़िरत वाइ'ज़
ख़ुदारा अब तो मीर-ए-कारवाँ का ज़िक्र करने दो
सय्यद अंजुमन जाफ़री
ग़ज़ल
ज़मीं बदली फ़लक बदला मज़ाक़-ए-ज़िंदगी बदला
तमद्दुन के क़दीम अक़दार बदले आदमी बदला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ग़म के भरोसे क्या कुछ छोड़ा क्या अब तुम से बयान करें
ग़म भी रास न आया दिल को और ही कुछ सामान करें
मीराजी
ग़ज़ल
बशीर 'बद्र' की ग़ज़लें सुना रहा था मैं
कल आसमाँ को ज़मीं पर बुला रहा था मैं
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
ग़ज़ल
नहीं कुछ फ़ैज़ हासिल था ज़माने से ख़फ़ा हो कर
मैं दीवाना बना हूँ ख़ुद ही उस बुत पर फ़ना हो कर