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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-इश्क़ में तकमील-ए-इबादत के लिए
मैं ने सर यार के क़दमों में झुका रक्खा है
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
ज़ाहिद-ए-इश्क़ से जुदा मज़हब-ए-इश्क़ है मिरा
झुकना दर-ए-नक़ीब पर मेरे लिए है बेहतरी
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मसीहा वो न हों तो दर्द-ए-उल्फ़त कम नहीं होता
ये ज़ख़्म-ए-इश्क़ है इस ज़ख़्म का मरहम नहीं होता
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
मुझ को तन्हा देखने वाले न समझें राज़-ए-इश्क़
मेरी तन्हाई के लम्हे यार के आग़ोश हैं