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ग़ज़ल
कहें क्या कि क्या क्या सितम देखते हैं
लिखा है जो क़िस्मत में हम देखते हैं
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
ईजाद ग़म हुआ दिल-ए-मुज़्तर के वास्ते
पैदा जुनूँ हुआ है मिरे सर के वास्ते
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
क़ातिल के कूचे में हमा-तन जाऊँ बन के पाँव
मर कर ही ताकि सो तो ज़रा पाऊँ तन के पावँ
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
सर मिला है इश्क़ का सौदा समाने के लिए
आँखें दीं इंसान को आँसू बहाने के लिए
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
ज़ीनत-ए-उनवाँ है मज़मूँ आलम-ए-तौहीद का
मतला-ए-दीवाँ न क्यूँ मतला बने ख़ुर्शीद का
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
जो मेहरबाँ कहीं वो रश्क-ए-माह हो जावे
तो ये गदा भी कभी बादशाह हो जावे
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
दिल तंग उस में रंज-ओ-अलम शोर-ओ-शर हों जम्अ'
चैन आए ख़ाक घर में जब इतने ज़रर हों जम्अ'
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
दिखलाए न क्यों हश्र का आलम शब-ए-फ़ुर्क़त
कुछ रोज़-ए-क़यामत से नहीं कम शब-ए-फ़ुर्क़त
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
दिल को जिस वक़्त ख़याल सफ़-ए-मिज़्गाँ होगा
पा-ए-जाँ में ख़लिश-ए-ख़ार-ए-मुग़ीलाँ होगा
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
ऐ शो'ला-रूख़ इतना है तिरा रंग-ए-बदन सुर्ख़
पहने है सफ़ेद और नज़र आती है चिकन सुर्ख़
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
या-रब है आज उन के ख़ुद आने का क्या सबब
उल्फ़त जता के मुझ को मनाने का क्या सबब
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
होश-ओ-शकेब-ओ-ताब-ओ-सब्र-ओ-क़रार पांचों
क़ुर्बान कर चुका हूँ मैं तुझ पे यार पांचों