aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "fara.ngii-mahal"
बीमार-ए-इश्क़ कहते हैं दारुश्शिफ़ा उसेऐसी ही जो हसीन फ़रंगी-महल में है
उश्शाक-ए-लखनऊ की कशिश देख ऐ मसीहलंदन के ख़ूब-रू भी फ़रंगी-महल गए
आईना-ए-कर्ब लफ़्ज़ ओ मअ'नीफ़रहंग-ए-मलाल हो गए हम
आईना-ए-कर्ब लफ़्ज़-ओ-मा'नीफ़रहंग-ए-मलाल हो गए हम
सर चश्म सब्र दिल दीं तन माल जान आठोंसदक़ा कई हैं तुम पर लो मेहरबान आठों
ख़्वाब के रंग दिल-ओ-जाँ में सजाए भी गएफिर वही रंग ब-सद तौर जलाए भी गए
कहो कि तूर पे जलता रहे चराग़ अभीमुझे शराब से हासिल नहीं फ़राग़ अभी
करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबादमिरी निगाह नहीं सू-ए-कूफ़ा-ओ-बग़दाद
जाते हुए नहीं रहा फिर भी हमारे ध्यान मेंदेखी भी हम ने मछलियाँ शीशे के मर्तबान में
ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवामवाए-तमन्ना-ए-ख़ाम वाए-तमन्ना-ए-ख़ाम
उदास देख के वजह-ए-मलाल पूछेगावो मेहरबाँ नहीं ऐसा कि हाल पूछेगा
वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँख़ुदा मुझे नफ़स-ए-जिबरईल दे तो कहूँ
काबे से मुझ को लाए सवाद-ए-कुनिश्त मेंइस्लाह दी बुतों ने ख़त-ए-सर-नविश्त में
ग़म-ओ-मलाल से पाया कभी न दिल ने फ़राग़क़फ़स मिला कि हमें आशियाँ नहीं मालूम
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