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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
दिखा के लम्हा-ए-ख़ाली का अक्स-ए-ला-तफ़सीर
ये मुझ में कौन है मुझ से फ़रार करते हुए
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
निकल कर ख़ुद से बाहर भागने से ख़ुद में आने तक
फ़रार आख़िर है ये कैसा ये कैसी आज़माइश है