आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "fard-e-jurm"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "fard-e-jurm"
ग़ज़ल
ज़मीं की तरह जब हासिल है क़ुदरत बुर्दबारी की
रहूँ ऐ 'जुर्म' क्यों गर्दिश में नाहक़ आसमाँ बन कर
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
ऐ 'जुर्म' दर्द-ओ-इश्क़ का मिलना नहीं है खेल
जब तक किसी बशर को ये ने'मत ख़ुदा न दे
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
मुक़द्दर में जो थी ऐ 'जुर्म' क़ैद-ए-ज़ीस्त की सख़्ती
अनासिर के रवाबित बन गए दीवार-ओ-ज़िंदाँ की
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
गिला बे-सूद है ऐ 'जुर्म' बे-मेहरी-ए-आलम का
बुरा कुछ लोग कहते हैं तो कुछ अच्छा समझते हैं
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
उसी को सोचना पड़ती हैं तदबीरें रिहाई की
जो ताइर जुर्म-ए-आज़ादी में ज़ेर-ए-दाम होता है
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
न पहुँच सका जहाँ तक कभी पा-ए-किब्र-ओ-दानिश
वहीं 'जुर्म' ले गई है मुझे मेरी ख़ाकसारी
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
पलट गया 'जुर्म' रुख़ हवा का हैं ऐसे आसार अब हुवैदा
बहार आए न बा'द जिस के चमन में वो महशर-ए-ख़िज़ाँ है
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
मुंसिफ़ के भी गले में है इक तौक़-ए-फ़र्द-ए-जुर्म
इंसाफ़ किस से माँगते हम से गुनाहगार
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
इक मौज-ए-ख़ून-ए-ख़ल्क़ थी किस की जबीं पे थी
इक तौक़-ए-फ़र्द-ए-जुर्म था किस के गले में था
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
मेरा सर हाज़िर है लेकिन मेरा मुंसिफ़ देख ले
कर रहा है मेरी फ़र्द-ए-जुर्म को तहरीर कौन
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
है फ़र्द-ए-जुर्म ही मेरे ख़िलाफ़ ऐ 'अबरार'
मिज़ाज उस का ये सुनते हैं मुंसिफ़ाना है