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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
रहे दो दो फ़रिश्ते साथ अब इंसाफ़ क्या होगा
किसी ने कुछ लिखा होगा किसी ने कुछ लिखा होगा
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
हवा में उड़ के सैर-ए-आलम-ए-ईजाद करते हैं
फ़रिश्ते दंग हैं वो काम आदम-ज़ाद करते हैं