आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "farmaa"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "farmaa"
ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
दिल नहीं तुझ को दिखाता वर्ना दाग़ों की बहार
इस चराग़ाँ का करूँ क्या कार-फ़रमा जल गया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रात और दिन के बीच कहीं पर जागे सोए रस्तों में
मैं तुम से इक बात कहूँगा तुम भी कुछ फ़रमा देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
कभी जो पर्दा-ए-बे-सूरती में जल्वा-फ़रमा थे
उन्हीं को आलम-ए-सूरत में देखा बे-हिजाबाना