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ग़ज़ल
देखे कहीं मुझ को तो लब-ए-बाम से हट जाए
इस वज़्अ से उस की मिरा दिल क्यूँकि न फट जाए
मोहम्मद अमान निसार
ग़ज़ल
चाहिए हँस कर छिड़कना ऐ लब-ए-जानाँ नमक
आतिश-ए-ग़म से कबाब और ये दिल-ए-सोज़ाँ है एक
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
शराब लाल-ए-लब-ए-दिल-बराँ है मुझ कूँ मुबाह
अब ऐश-ओ-इशरत-ए-दोनों-जहाँ है मुझ कूँ मुबाह