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ग़ज़ल
'सफ़ीर' अब तक तो रूदाद-ए-मोहब्बत ख़ाम है तेरी
अभी तो आँख भी फ़र्त-ए-अलम से नम नहीं होती
मोहम्मद अब्बास सफ़ीर
ग़ज़ल
दूर रह कर वतन की फ़ज़ा से जब भी अहबाब की याद आई
हिज्र में रह गया दिल तड़प कर आँख फ़र्त-ए-अलम से भर आई
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-ग़म-ओ-अलम से जब दिल हुआ है गिर्यां
उस ने इनायतों के दरिया बहा दिए हैं
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
'अलम’ रब्त-ए-दिल-ओ-पैकाँ अब इस आलम को पहुँचा है
कि हम पैकाँ को दिल दिल को कभी पैकाँ समझते हैं
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
ग़ज़ल
बदला न मेरा रंज-ओ-अलम हाए रे क़िस्मत
दिल और मचल जाता है दिल-गीर के आगे
मक़्सूद आलम ख़ाँ आलम बरेलवी
ग़ज़ल
मिला क्या क्या न उन से हम को ऐ 'आलम' मोहब्बत में
सितम ढाया करें वो हम तो एहसानात कहते हैं
मक़्सूद आलम ख़ाँ आलम बरेलवी
ग़ज़ल
बड़े चर्चे हैं 'आलम' आप की ख़ाना-ख़राबी के
ख़ुदा का शुक्र है मक़्ते में आ कर बैठ जाते हैं