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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
वारदात-ए-क़ल्ब लिक्खी हम ने फ़र्ज़ी नाम से
और हाथों-हाथ उस को ख़ुद ही ले जा कर दिया
आदिल मंसूरी
ग़ज़ल
मज़ाक़ उड़ाते हैं लोग फ़र्ज़ी कहानियों का
कि सीधे-सादे से उन बुज़ुर्गों का क्या बनेगा
जहाँज़ेब साहिर
ग़ज़ल
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
इस तरह मिल जाए शायद बारयाबी का शरफ़
मशवरा है अब के अर्ज़ी भेज फ़र्ज़ी नाम से
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
मुझे शतरंज के ख़ानों में चलना तू सिखाएगा
मैं फ़र्ज़ी बन चुका कब का तू अब तक इक पियादा है
औरंग ज़ेब
ग़ज़ल
शाम होते ही चले आते हैं कुछ फ़र्ज़ी ख़याल
क्या मिरे लफ़्ज़ उन्हें घर सा मज़ा देते हैं