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ग़ज़ल
वो हाज़िर हो कि ग़ाएब हो निहाँ यूँ भी है और यूँ भी
सरासर राज़ राज़-ए-कुन-फ़काँ यूँ भी है और यूँ भी
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
हिक़ारत से न देखो दिल को जाम-ए-जम भी कहते हैं
इसी ख़ाक-ए-तपाँ को फ़ातेह-ए-आलम भी कहते हैं
सहाब क़ज़लबाश
ग़ज़ल
वो अस्बाब-ए-शिकस्त-ओ-फ़त्ह ख़ुद ही जान जाएगा
अलम जब हाथ से छूटे तो मेरा सर लिए जाना
ज़ुबैर शिफ़ाई
ग़ज़ल
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं
दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है