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ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
कह के सोया हूँ ये अपने इज़्तिराब-ए-शौक़ से
जब वो आएँ क़ब्र पर फ़ौरन जगा देना मुझे
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
'अजब दिन थे कि बरसों ज़र्ब-ए-ख़ुशबू याद रहती थी
'अजब दिन हैं कि फ़ौरन ज़ख़्म-ए-ख़ंजर भूल जाता हूँ
असलम कोलसरी
ग़ज़ल
ये हम भी जानते हैं मुल्क-गीरी शौक़ है बे-जा
मगर हम जीत कर फ़ौरन इलाक़ा छोड़ देते हैं
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
जब भी चाहा कि उसे बढ़ के मैं फ़ौरन छू लूँ
कच्ची नींदों से कोई मुझ को जगा देता है