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ग़ज़ल
जो मैं जाता हूँ उठ कर फ़ी-अमानिल्लाह कहता हूँ
तिरे मुँह से न ओ काफ़िर कभी निकला ख़ुदा-हाफ़िज़
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़ियारत को चले हैं शैख़-ओ-ज़ाहिद फ़ी-अमानिल्लाह
ख़ुदा की शान है कुछ फिर गई तक़दीर-ए-मय-ख़ाना
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए