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ग़ज़ल
बहुत मुश्किल है मुझ से मय-परस्ती कैसे छूटेगी
मगर हाँ आज से फ़िर्का-परस्ती छोड़ देता हूँ
अहमद कमाल परवाज़ी
ग़ज़ल
ये उस का काम है फ़िरक़ा-परस्ती छोड़ दे कैसे
सियासत कुछ भी कर ले उस की मक्कारी नहीं जाती
मोहम्मद अली साहिल
ग़ज़ल
नेक-नामी में दिला फ़िरक़ा-ए-उश्शाक़ हैं इश्क़
है वो बदनाम मोहब्बत में जो बदनाम नहीं
अमानत लखनवी
ग़ज़ल
कहीं सूबा-परस्ती है कहीं फ़िरक़ा-परस्ती है
वही तफ़रीक़-ए-इंसानी जो पहले थी वो अब भी है
रूमाना रूमी
ग़ज़ल
सँभल ऐ फ़िरक़ा-ए-उश्शाक़ अब फिर इम्तिहाँ होगा
सर-ए-चिलमन किसी काफ़िर का फिर गेसू सँवरता है
नाज़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
मिरा है रक्त हिन्दी ज़ात हिन्दी ठेठ हिन्दी हूँ
यही मज़हब यही फ़िरक़ा यही है ख़ानदाँ मेरा
विनायक दामोदर सावरकर
ग़ज़ल
कामिल उस फ़िरक़ा-ए-ज़ुहहाद में उठा न कोई
कुछ हुए तो यही रिन्दान-ए-क़दह ख़्वार हुए