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ग़ज़ल
कि ख़िरद की फ़ित्नागरी वही लुटे होश छा गई बे-ख़ुदी
वो निगाह-ए-मस्त जहाँ उठी मिरा जाम-ए-ज़िंदगी भर गया
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
दिखा दिखा के मआल-ए-जुनूँ की फ़ित्नागरी
बशर को रस्म-ए-मुरव्वत सिखाई जाती है
लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़
ग़ज़ल
तन-आसानी-ए-साहिल को तो कुछ कहता नहीं कोई
हर इक ने तोहमत-ए-फ़ित्नागरी तूफ़ाँ पे रक्खी है
मोहम्मद ख़ाँ साजिद
ग़ज़ल
मैं कीने से भी ख़ुश हूँ कि सब ये तो कहते हैं
उस फ़ित्ना-गर को लाग है इस मुब्तला के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
फ़ित्नागर शौक़ से 'बहज़ाद' को कर दे पामाल
इस से तस्कीन-ए-दिली गर तुझे हासिल हो जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
जो रात ख़्वाब में उस फ़ित्ना-गर को देखते हैं
न पूछ हम जो क़यामत सहर को देखते हैं