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ग़ज़ल
बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
वो पाबंद-ए-क़फ़स जो फ़ितरतन आज़ाद होता है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
अजय सहाब
ग़ज़ल
मिरा मा'सूम दिल तो फ़ितरतन शीशे के जैसा है
मुसलसल वार होने पर तो लोहा टूट जाएगा
मशकूर ममनून क़न्नौजी
ग़ज़ल
शफ़ीक़ बरेलवी
ग़ज़ल
किसी सादा वरक़ पर भी कोई ख़त खींच लेता है
ये बंदा फ़ितरतन ऐ 'क़ौस' तन्हा हो नहीं सकता
क़ौस सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मैं गुनहगार-ए-नशेमन हूँ न पाबंद-ए-क़फ़स
फ़ितरतन कुछ तो सुकूँ चाहिए पर्वाज़ के बा'द