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ग़ज़ल
पस-मंज़र में 'फ़ीड' हुए जाते हैं इंसानी किरदार
फ़ोकस में रफ़्ता रफ़्ता शैतान उभरता आता है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
मिटता है फ़ौत-ए-फ़ुर्सत-ए-हस्ती का ग़म कोई
उम्र-ए-अज़ीज़ सर्फ़-ए-इबादत ही क्यूँ न हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल ही फ़ानूस-ए-हवा दिल ही ख़स-ओ-ख़ार-ए-हवस
देखना ये है कि उस का क़ुर्ब क्या रौशन करे
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
इक फ़ानूस है जिस में अपनी रूह 'मतीन' सुलगती है
भीगना जब ठहरा तो उसी फ़ानूस के अंदर भीगेंगे
ग़यास मतीन
ग़ज़ल
आने से फ़ौज-ए-ख़त के न हो दिल को मुख़्लिसी
बंधुआ है ज़ुल्फ़ का ये छुटाया न जाएगा
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
शब कि वो मजलिस-फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था
रिश्ता-ए-हर-शम'अ ख़ार-ए-किस्वत-ए-फ़ानूस था