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ग़ज़ल
इसी अंदाज़ से झूमेगा मौसम गाएगी दुनिया
मोहब्बत फिर हसीं होगी नज़ारे फिर जवाँ होंगे
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
इसी मिट्टी में मिल जाएगी पूँजी उम्र भर की
गिरेगी जिस घड़ी दीवार-ए-जाँ कैसा लगेगा
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
आज यक़ीनन मेंह बरसेगा आज गिरेगी बर्क़ ज़रूर
अँखियाँ भी पुर-शोर बहुत हैं कजरा भी घनघोर बहुत
उमर अंसारी
ग़ज़ल
मैं दामन थामता हूँ और अदा दामन छुड़ाती है
मोहब्बत है तो कुछ बे-गानगी भी पाई जाती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता
बढ़ेगा 'आशिक़ी का ए'तिबार आहिस्ता आहिस्ता
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
आने वाली सुब्ह गिनेगी रात के अंधे तूफ़ाँ में
कितने साहिल ही पर डूबे कितने भँवर के पार हुए