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ग़ज़ल
चल आ कि दहर से किज़्ब-ओ-रिया कशीद करें
किसी के जुर्म से अपनी सज़ा कशीद करें
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
वासिल उस्मानी
ग़ज़ल
भीड़ दुनिया में है अब किज़्ब-ओ-रिया वालों की
आज-कल मिलते नहीं साहिब-ए-ईमान बहुत
ज़ाकिर हुसैन हुसैनी ज़ाकिर
ग़ज़ल
शे'र पैग़म्बरों की तरह से उतरते हैं अब भी मगर
मेरे किज़्ब-ओ-रिया दस्त-ए-तख़्लीक़ से मो'जिज़ा ले गए
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
वासिल उस्मानी
ग़ज़ल
दहन-ए-ग़ुन्चा से पैग़ाम-ए-वफ़ा सुनते हैं
ग़ाज़ा-ए-आरिज़-ए-सद-हस्त-ए-अदम है हम को
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
सैंकड़ों सज्दों में वाइ'ज़ को हुआ है हासिल
ज़ीनत-ए-महफ़िल-ए-अर्बाब-ए-रिया हो जाना
क़ैसर अमरावतवी
ग़ज़ल
ख़ून-ए-बुलबुल को बना कर ग़ाज़ा-ए-रू-ए-बहार
पत्ती पत्ती में चमन की हुस्न पैदा कर दिया
फ़ाज़िल काश्मीरी
ग़ज़ल
ख़िदमत हो ग़ाज़ा-ए-गुल-ए-रुख़ की नसीम को
मौज-ए-हवा चमन में करे इंतिज़ाम-ए-ज़ुल्फ़