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ग़ज़ल
क्या वो भी दिन थे ख़ूब कि लूटें थे 'मुसहफ़ी'
हम भी नज़ारा-ए-गह-ओ-बे-गाह का मज़ा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अब इम्तियाज़-ए-जल्वा-गह-ओ-जल्वा-गर कहाँ
मेरी नज़र में पर्दा-ए-शम्स-ओ-क़मर कहाँ
अमजद अली ग़ज़नवी
ग़ज़ल
शाज़ तमकनत
ग़ज़ल
मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ
बोलूँ तो सर से पा तक हसरत की दास्ताँ हूँ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सज्दा-गाह-ए-अहल-ए-दिल बा'द-ए-फ़ना हो जाइए
सफ़्हा-ए-हस्ती पे इक नक़्श-ए-वफ़ा हो जाइए