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ग़ज़ल
अब न कोई ख़ौफ़ दिल में और न आँखों में उमीद
तू ने मर्ग-ए-ना-गहाँ बीमार अच्छा कर दिया
आदिल मंसूरी
ग़ज़ल
जो हयात-ए-जाविदाँ है जो है मर्ग-ए-ना-गहाँ
आज कुछ उस नाज़ उस अंदाज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मज़ा आता नहीं थम थम के हम को रंज-ओ-राहत का
ख़ुशी हो ग़म हो जो कुछ हो इलाही ना-गहाँ क्यूँ हो