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ग़ज़ल
मिरी छाती पे रख कर दस्त की तश्ख़ीस हुकमा ने
ये सीना कान-ए-गंधक या कि आतिश-दान है क्या है
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
नौशादर गंधक की ज़बाँ में शेर कहें इस युग में
सच के नीले ज़हर को लहजे के तेज़ाब में घोलें
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
ये धुआँ है बारूदी ये महक है गंधक की
शहर का निशाँ अब तो बे-अमाँ तअ'स्सुब है
सादिया रोशन सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
चाहत के बदले में हम तो बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
जान सी शय बिक जाती है एक नज़र के बदले में
आगे मर्ज़ी गाहक की इन दामों तो सस्ती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
ये गधा जो अपनी ग़फ़्लत से है बेवक़ूफ़ इतना
जो ये ख़ुद को जान जाता बड़ा होशियार होता