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ग़ज़ल
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
ख़ुशा वो दौर कि जब था मसर्रतों का हुजूम
रुख़-ए-हयात पे गर्द-ए-मलाल से पहले
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ख़ुशा वो दौर कि जब था मसर्रतों का हुजूम
रुख़-ए-हयात पे गर्द-ए-मलाल से पहले