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ग़ज़ल
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे नाला-हा-ए-शाम-ए-फ़ुर्क़त से
ज़मीं भी काँपती है आसमाँ थर्राए जाते हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
गुल हमा-तन-ज़ख़्म हैं फिर भी हमा-तन-गोश हैं
बे-असर कुछ नाला-हा-ए-बुलबुल-ए-शैदा हैं आप
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
वो जिन को सुन के इक मुद्दत से टस से मस नहीं होते
मुझे वो नाला-हा-ए-बेअसर अच्छे नहीं लगते
सुल्तान शाकिर हाश्मी
ग़ज़ल
गो तुम तक जा नहीं पाते तुम उन को सुन नहीं पातीं
वो लेकिन नाला-हा-ए-बेअसर सब ख़ैरियत से हैं
ऐन सीन
ग़ज़ल
मदद ऐ हिम्मत-ए-गर्दूं-शिकन अब ज़ोफ़ से कब तक
रहेंगे नाला-हा-ए-बेअसर दिल में निहाँ हो कर
रासिख़ दहलवी
ग़ज़ल
ये ख़ास वक़्तों के कुछ नाला-हा-ए-मौज़ूँ हैं
हमारे शेर 'मुबारक' नहीं सफ़ीने में