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ग़ज़ल
ग़र्क़-ए-दरिया-ए-मोहब्बत की नहीं मिलती लाश
वर्ना डूबा हुआ निकले है सुना तीसरे दिन
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब
रुक गए अपने क़दम आए जो मंज़िल के क़रीब
इफ़्तिख़ार आज़मी
ग़ज़ल
ये गुल भी ज़ीनत-ए-आग़ोश-ए-दरिया-ए-क़ज़ा निकले
जिन्हें हम बा-वफ़ा समझे थे वो भी बेवफ़ा निकले
ऐश मेरठी
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नुसरत लखनवी
ग़ज़ल
दरिया-ए-फ़िक्र-ए-नौ की रवानी में गिर गया
सूरज फिसल के बर्फ़ के पानी में गिर गया
लकी फ़ारुक़ी हसरत
ग़ज़ल
दरिया-ए-नूरू-ओ-रंग है निकहत है ज़िंदगी
पैग़म्बर-ए-ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत है ज़िंदगी
माया खन्ना राजे बरेलवी
ग़ज़ल
कुछ तो कर दरिया मिरे इन को डुबो या पार कर
कश्तियों ने अपना दुख आब-ए-रवाँ पर लिख दिया