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ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ मेरे गुहर की आबरू
मैं हूँ ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इल्म के दरिया से निकले ग़ोता-ज़न गौहर-ब-दस्त
वाए महरूमी ख़ज़फ़ चैन लब साहिल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नहीं जाती मता-ए-लाल-ओ-गौहर की गिराँ-याबी
मता-ए-ग़ैरत-ओ-ईमाँ की अर्ज़ानी नहीं जाती
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वही है साहिब-ए-इमरोज़ जिस ने अपनी हिम्मत से
ज़माने के समुंदर से निकाला गौहर-ए-फ़र्दा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बर्क़-ए-ख़िर्मन-ज़ार गौहर है निगाह-ए-तेज़ याँ
अश्क हो जाते हैं ख़ुश्क अज़-गरमी-ए-रफ़्तार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा
लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
चप्पे चप्पे पे हैं याँ गौहर-ए-यकता तह-ए-ख़ाक
दफ़्न होगा कहीं इतना न ख़ज़ाना हरगिज़