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ग़ज़ल
शाद लखनवी
ग़ज़ल
कुछ उस ख़ुशबू की हद भी है मोअत्तर हो गया बिल्कुल
मिरे हाथों में वस्फ़-ए-गेसू-ए-शबगीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मस्त हो कर उस की ख़ुशबू से गिरा था बच गया
जब सँभलने को वो ज़ुल्फ़-ए-मुश्क-सा पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जज़्ब-ए-शमीम-ए-ज़ुल्फ़ है दाना-ए-दाम से सिवा
सैकड़ों दिल खिंच आए हैं गेसू-ए-मुश्क-बार में
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
चेहरा भी बर्क़ भी दिल लेने में गेसू भी बला
एक सा मोजज़ा है काफ़िर ओ दीं-दार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इत्र-फ़शाँ शमीम-ए-गुल बाद-ए-सबा लतीफ़-तर
ताज़ा-कुन-ए-मशाम-ए-जाँ गेसू-ए-मुश्क-बू भी है
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
ज़माना क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन को भूल न जाए
किसी के हल्क़ा-ए-गेसू में वो कशिश ही नहीं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे
हर लाला याँ है नाफ़ा-ए-मुश्क-ए-ख़ुतन मुझे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
न आए मुझ से क्यूँकर ख़ुशबू-ए-मुश्क-ए-हिरन आख़िर
छुआ था संदली हाथों से उस ने ये बदन आख़िर
अदनान हामिद
ग़ज़ल
ज़ख़्मों पे दिल के सूदा-ए-अल्मास ही छिड़क
हल कर के हो सो हो नमक-ओ-मुश्क-ए-नाब में