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ग़ज़ल
दिल मिरा पेच-ओ-ख़म-ए-गेसू-ए-उर्दू का असीर
फ़न मिरा शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-ग़ज़ल
अयाज़ आज़मी
ग़ज़ल
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'
नाम उर्दू का हुआ है इसी घर से ऊँचा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कोई सुलझा न सका ज़ुल्फ़-ए-अदब बाद तिरे
पड़ गई गेसू-ए-उर्दू में शिकन तेरे बाद
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
ग़ज़ल
कुछ उस ख़ुशबू की हद भी है मोअत्तर हो गया बिल्कुल
मिरे हाथों में वस्फ़-ए-गेसू-ए-शबगीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
चेहरा भी बर्क़ भी दिल लेने में गेसू भी बला
एक सा मोजज़ा है काफ़िर ओ दीं-दार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़माना क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन को भूल न जाए
किसी के हल्क़ा-ए-गेसू में वो कशिश ही नहीं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
क्यूँ असीर-ए-गेसू-ए-ख़म-दार-ए-क़ातिल हो गया
हाए क्या बैठे-बिठाए तुझ को ऐ दिल हो गया
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
ये है 'बेदार' ज़हर-आलूदा मार इस से हज़र करना
न लेना हाथ में तू गेसू-ए-पुर-ताब-ए-दुनिया को
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
निकले न फँस के गेसू-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म से दिल
साहिल पे ख़ाक पहुँचे जो कश्ती भँवर में है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
रिश्ता-ए-जाँ में गिरह पड़ गई उलझन के सबब
दिल को जब गेसू-ए-पुर-पेच-ओ-शिकन याद आया
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
दिल-ए-'मुज़्तर' को क़ैद-ए-दाम-ए-गेसू-ए-परेशाँ से
रिहा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते