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ग़ज़ल
तुम्हारे रोज़ के इन मन-घड़त फ़तवों पे वा'इज़ जी
कभी अब ग़ौर फ़रमाने का मेरा मन नहीं करता
साजिद अली
ग़ज़ल
हैं शोहरे बाजी हमारी गत के जगत शरारत चकित चपत के
ये राग सुन-सुन नई घड़त के न लेंगे करवट नवाब कब तक
मोहसिन ख़ान मोहसिन
ग़ज़ल
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
उस सम्त वहशी ख़्वाहिशों की ज़द में पैमान-ए-वफ़ा
उस सम्त लहरों की धमक कच्चा घड़ा आवारगी