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ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
कहते हैं जिस को 'नज़ीर' सुनिए टुक उस का बयाँ
था वो मोअल्लिम ग़रीब बुज़दिल ओ तरसंदा-जाँ
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कहते हैं जिस को 'नज़ीर' सुनिए टुक इस का बयाँ
था वो मोअल्लिम ग़रीब बुज़दिल-ओ-तरसंदा-जाँ
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हम ने की मश्क़-ए-सुख़न मिस्रा-ए-'ग़ालिब' पे 'नदीम'
लोग इस बारे में अब देखिए क्या कहते हैं
फ़रहत नदीम हुमायूँ
ग़ज़ल
आज ज़रा फ़ुर्सत पाई थी आज उसे फिर याद किया
बंद गली के आख़िरी घर को खोल के फिर आबाद किया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल
मुझ से इतनी वहशत है तो मेरी हदों से दूर निकल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना
मिरा ज़ौक़ उन की चाहत मिरा शौक़ उन पे मरना