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ग़ज़ल
अगरचे मिलना है तुम को मुझ से तो कोई दीगर जगह बताओ
तमाम अहबाब होंगे मेरे सो घंटाघर पर मिलेंगे कैसे
महवर सिरसिवी
ग़ज़ल
सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़
ग़ज़ल
राहिब ने मिरे क़श्क़ा संदल का लगाया है
नाक़ूस है घंटा है ज़ुन्नार है और मैं हूँ
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
तुझे घाटा न होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में
हम अपने सर तिरा ऐ दोस्त हर एहसान लेते हैं