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ग़ज़ल
जो है गर्दिशों ने घेरा, तो नसीब है वो मेरा
मुझे आप से शिकायत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
क्यूँ न जज़्ब हो जाएँ इस हसीं नज़ारे में
रौशनी का झुरमुट है मस्तियों का घेरा है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ के सिवा नर्गिस-ए-जादू के सिवा
दिल को कुछ और बलाओं ने भी आ घेरा है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तंग है 'शाद' मिरे ज़ौक़ की वुसअत के लिए
हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़ है आफ़ाक़ का घेरा क्या है
नरेश कुमार शाद
ग़ज़ल
हर सू से ग़मों ने घेरा है अब है तो सहारा तेरा है
मुश्किल आसाँ करने वाले आसान मिरी मुश्किल कर दे
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
ऐ ग़म मुझे याँ अहल-ए-तअय्युश ने है घेरा
इस भीड़ में तू ऐ मिरे ग़म-ख़्वार कहाँ है