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ग़ज़ल
तुम्हें इन मौसमों की क्या ख़बर मिलती अगर हम भी
घुटन के ख़ौफ़ से आब ओ हवा तब्दील कर लेते
सलीम कौसर
ग़ज़ल
खुली फ़ज़ाओं में साँस लेना अबस है अब तो घुटन है ऐसी
कि चारों जानिब शजर खड़े हैं सलीब-सूरत तमाम लिखना
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
ये क्या घुटन है मोहब्बत की पहरे-दारी में
वो काग़ज़ों पे खुली खिड़कियाँ बनाता है