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ग़ज़ल
वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
न जाने कितने गिले इस में मुज़्तरिब हैं नदीम
वो एक दिल जो किसी का गिला-गुज़ार नहीं
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
तो क्या सारे गिले-शिकवे अभी कर लोगे मुझ से
कुछ अब कल के लिए रक्खो मुझे नींद आ रही है
मोहसिन असरार
ग़ज़ल
न उट्ठा फिर कोई 'रूमी' अजम के लाला-ज़ारों से
वही आब-ओ-गिल-ए-ईराँ वही तबरेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गिले शिकवे कहाँ तक होंगे आधी रात तो गुज़री
परेशाँ तुम भी होते हो परेशाँ हम भी होते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
उस के भी कुछ गिले हैं दिल उन का हिसाब तुम रखो
दीद ने उस में की बसर उस की ख़बर लिए बग़ैर
जौन एलिया
ग़ज़ल
ख़ार-ए-चमन थे शबनम शबनम फूल भी सारे गीले थे
शाख़ से टूट के गिरने वाले पत्ते फिर भी पीले थे