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ग़ज़ल
दो दो कर के बोसा-ए-मौऊद जब मैं ने गिने
हँस के पूछा हैं इकट्ठे ये किए कब कब के दो
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
इक इक कर के मैं ने अपने चेहरे गिने जब तौबा तौबा
छोटी सी दीवार के ऊपर इतने चेहरों की तस्वीरें
मुकेश आलम
ग़ज़ल
तोड़े हैं जाम तारे गिने बदली करवटें
आ देख तेरी याद में क्या क्या नहीं किया
अंश प्रताप सिंह ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
कल हम ने जब तारे गिने और गुफ़्तुगू की चाँद से
सारे चराग़ों ने कहा था हम से सोने के लिए