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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
है वो तो हद्द-ए-गिरफ़्त-ए-ख़याल से भी परे
ये सोच कर ही ख़याल उस का अपने ध्यान में ला
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
ये किस ख़ता की सज़ा में हैं दोहरी ज़ंजीरें
गिरफ़्त मौत की है ज़िंदगी की क़ैद में हूँ
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
गिरफ़्त पंजा-ए-फ़ना में ख़स्ता-हाल-ओ-ख़ूँ-चकाँ
हयात-ए-मुस्तआर है ज़मीं से आसमान तक