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ग़ज़ल
अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
गिरते ख़ेमे जलती तनाबें आग का दरिया ख़ून की नहर
ऐसे मुनज़्ज़म मंसूबों को दूँ कैसे आफ़ात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
बढ़ के रिंदों ने क़दम हज़रत-ए-वा'इज़ के लिए
गिरते पड़ते जो दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जाने मैं कौन से पतझड़ में हुआ था बर्बाद
गिरते पत्तों की इक आवाज़ है हर जा मुझ में
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
हर्फ़ बर्ग-ए-ख़ुश्क बन कर टूटते गिरते रहे
ग़ुंचा-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना होंट पर फूटा नहीं