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ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दिल-ए-नालाँ तुम्हारे हल्क़ा-ए-गेसू में कहता है
मैं हिन्दोस्तान में हूँ काफ़िरों ने मुझ को घेरा है
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
तिरी यादों के दरिया में हर इक शब ये नहाती हैं
बदन ग़ज़लों का मेरी ऐसे ही गोरा नहीं होता
अनस नबील
ग़ज़ल
जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब
रौशनाई शम्अ की फीकी नज़र आती है सुब्ह
ताबाँ अब्दुल हई
ग़ज़ल
गोरा रुख़ बोसे से नीला हुआ और ग़ैज़ से सुर्ख़
नस्तरन बन गया लाला गुल-ए-सौसन हो कर