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ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जो भी मिला उसी का दिल हल्क़ा-ब-गोश-ए-यार था
उस ने तो सारे शहर को कर के ग़ुलाम रख दिया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गोश ज़द चट-पट ही मरना इश्क़ में अपने हुआ
किस को इस बीमारी-ए-जाँ-काह से फ़ुर्सत हुई
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जो ज़माने को बुरा कहते हैं ख़ुद हैं वो बुरे
काश ये बात तिरे गोश-ए-गिराँ तक पहुँचे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कल जो गुलज़ार में हैं गोश-बर-आवाज़ 'अज़ीज़'
मुझ से बुलबुल ने लिया तर्ज़ ये शेवाई का