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ग़ज़ल
इल्म के दरिया से निकले ग़ोता-ज़न गौहर-ब-दस्त
वाए महरूमी ख़ज़फ़ चैन लब साहिल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मिरे आँसू हमेशा हैं ब-रंग-ए-लाल-ए-ग़र्क़-ए-ख़ूँ
जो ग़ोता आब में तू ने गुहर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
सरापा हुस्न-ए-समधन गोया गुलशन की कियारी है
परी भी अब तो बाज़ी हुस्न में समधन से मारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था
हम ग़ोता-ज़न हुए तो समुंदर में कुछ न था
सैफ़ ज़ुल्फ़ी
ग़ज़ल
ग़ोता-ज़न हम रहे कसरत के समुंदर में फ़ुज़ूल
कौन ये प्यास बुझाए तिरी वहदत के सिवा
गुलज़ार देहलवी
ग़ज़ल
दिल दे के बहर-ए-फ़िक्र में हो ग़ोता-ज़न अबस
दरिया-ए-इश्क़ की नहीं पाएँगे थाह आप