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ग़ज़ल
ग़नीम-ए-वक़्त के हमले का मुझ को ख़ौफ़ रहता है
मैं काग़ज़ के सिपाही काट कर लश्कर बनाता हूँ
सलीम अहमद
ग़ज़ल
ज़ोफ़ ओ ना-ताक़ती ओ सुस्ती ओ आज़ा-शिकनी
एक घंटे में जवानी के बढ़ा क्या क्या कुछ
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
सारा घर सोता है दो घंटे में आएगा अख़बार
आज 'मुज़फ़्फ़र' पाँच बजे ही कैसे बिस्तर छोड़ दिया