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ग़ज़ल
ग़म से ना-अहल-ए-वफ़ा हश्र तक आज़ाद न हो
मर के सौ बार हो ज़िंदा तो कभी शाद न हो
बेताब अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'
कमाल-ए-बे-ख़ुदी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
ग़ुलाम उस की लटों का है नहीं गोरों का ये 'अख़्तर'
कभी आज़ाद क्या दिल का मिरे हिन्दोस्ताँ होगा
अख़्तर आज़मी
ग़ज़ल
दरिया का सीना चीर के उभरे जो सत्ह पर
दामन में संग-रेज़े थे 'अख़्तर' गुहर न थे
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
मेरे ज़ाहिर पर निगाहें सब की हैं 'अफ़ज़ल' मगर
मेरे अंदर जो छुपा है वो गुहर देखेगा कौन
अफ़ज़ल इलाहाबादी
ग़ज़ल
दौलत-परस्त हिर्स-ओ-हवस के ग़ुलाम हैं
इफ़्लास की जबीं पे क़नाअत की शान है
सय्यद अख़्तर अली अख़्तर
ग़ज़ल
मैं ख़ुद से दूर हुआ जा रहा हूँ फिर 'अख़्तर'
वो फिर क़रीब से हो कर गुज़र गया होगा