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ग़ज़ल
ज़हे ज़िंदा-दिली ग़म की गुल-अफ़्शानी नहीं जाती
कुछ ऐसे अश्क भी हैं जिन की ताबानी नहीं जाती
अरमान अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़हीर देहलवी
ग़ज़ल
गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार-ए-मुजाहिद बे-असर हो जब
तो उस को क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन कहना ही पड़ता है
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
तख़य्युल की गुल-अफ़्शानी ग़ज़ल का नाम पाती है
किसी की याद से ज़ख़्मों की दुनिया मुस्कुराती है
ख़्वाजा ज़मीर
ग़ज़ल
वो गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार का पैकर 'सालिक'
आज कूचे से तिरे अश्क-फ़िशाँ गुज़रा है
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
तग़य्युर से बरी हुस्न-ओ-मोहब्बत की गुल-अफ़्शानी
गराँ गुज़री ज़माने पर ज़माना सर-गराँ बदला
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
दामन-ए-गुलचीं में भी कुछ फूल बरसाए 'रियाज़'
कहिए कुछ उस की ज़मीं में भी गुल-अफ़्शानी हुई
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
गुल-अफ़्शानी तो करती है हमारी चश्म-ए-तर लेकिन
इस अंधे शहर में तज़ईन-ए-दामाँ कौन देखेगा