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ग़ज़ल
निगह-ए-शौक़ से हुस्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार तो देख
आँखें खुल जाएँगी ये मंज़र-ए-दिलदार तो देख
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
रंग ख़ुशबू और गुल-ओ-गुलज़ार की है रौशनी
मेरी नस नस में तुम्हारे प्यार की है रौशनी
राशिदा माहीन मलिक
ग़ज़ल
किसी के प्यार में हर दम गुल-ओ-गुलज़ार सा रहना
बिना चक्खे किसी मय को यूँ ही सरशार सा रहना
नीलमा नाहीद दुर्रानी
ग़ज़ल
हमें ख़ार-ए-वतन 'गुलज़ार' प्यारे हैं गुल-ए-तर से
कि हर ज़र्रे को ख़ाक-ए-हिंद के शम्स ओ क़मर जाना
गुलज़ार देहलवी
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-दिल को कोई मरहम भी न रास आएगा
हर गुल-ए-ज़ख़्म में लज़्ज़त है नमक-दानों की