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ग़ज़ल
नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
जहाँ होते हो तुम देखो गुलाबी शाम होती है
तुम्हारा ज़िक्र होते ही नवम्बर चीख़ उठता है