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ग़ज़ल
ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना
मगर फिर ख़ुद-ब-ख़ुद वो आप का गुलनार हो जाना
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी
क्या ख़बर आज ख़िरामाँ सर-ए-गुलज़ार है कौन
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूँ या न करूँ
ज़िक्र-ए-मुर्ग़ान-ए-गिरफ़्तार करूँ या न करूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मैं तो पीता हूँ फ़क़त गुलनार होंटों की शराब
सब्बेह-इस्म-ए-रब्बेकल-आला रहे विर्द-ए-ज़बाँ