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ग़ज़ल
दिल ने किस मंज़िल-ए-बे-नाम में छोड़ा था मुझे
रात भर ख़ुद मिरे साए ने भी ढूँडा था मुझे
शोहरत बुख़ारी
ग़ज़ल
मताअ'-ए-इशरत-ए-बे-नाम की तलब में 'निहाल'
ग़मों के शहर में भी हम ख़ुशी के साथ रहे