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ग़ज़ल
हद-ए-जुग़राफ़िया से शे'र की दुनिया है जुदा
दूर कीलास से दो गज़ भी यहाँ तूर नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
आग दे दे कर ब-हद्द-ए-आशियाँ ये इंतिक़ाम
तिनका तिनका क्यों किसी को इस क़दर महबूब था
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
हुआ है अबरू-ए-जानाँ से दिल-ए-बेताब सद-पारा
मुक़ाबिल हो नहीं सकता दम-ए-शमशीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़ख़्म देते जाएँ लेकिन फ़िक्र-ए-मरहम भी करें
दर्द जब हद से सिवा हो जाए तो कम भी करें